डीपफेक या डीफफेक टेक्नोलॉजी क्या है?
Deepfake Technology इस वैज्ञानिक युग में वास्तविक इमेज या वीडियो में हेरफेर करके उस जैसा ही फर्जी कंटेंट तैयार करने की आधुनिक तकनीक है। या फिर आर्टिफिशयल इंटलीजेंस (AI) का इस्तेमाल कर ऐसा वीडियो, इमेज या कंटेंट तैयार करना जो वास्तविकता में घटित ही ना हुआ हो.
इन उदाहरणों से समझिए क्या है Deepfake Technology ?
इन दोनों बातों को इन दो उदाहरणों से आसानी से समझा जा सकता है.पहला उदाहरण- जैसे किसी का चेहरा किसी दूसरे के चेहरे वाले वीडियो पर लगाकर कोई वीडियो तैयार कर देना।दूसरा उदाहरण- आर्टिफिशयल इंटलीजेंस (Artificial Intelligence) की मदद से ऐसा वीडियो बना देना जो रियल या वास्तविक है ही नहीं।मतलब साफ है कि आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर गलत, नकली या फर्जी कंटेंट तैयार करना। जिसका असल से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है।

दुनियाभर में Deepfake की पहुंच
आप इस बात से ही इसकी पहुंच का अंदाजा लगा सकते हैं कि पुतिन ओबामा से लेकर नरेंद्र मोदी और सचिन तेंदुलर से लेकर रश्मिका मंदाना जैसे दुनियाभर के सेलिब्रेटी डीपफेक का शिकार हो चुके हैं। इंडिया में तो हर चार में से एक शख्स डीपफेक कन्टेंट का सामना कर रहा है। अलग-अलग उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आज पूरी दुनिया में बहुत बड़े पैमाने पर Deepfake का इस्तेमाल किया जा रहा है। जो सरकारों से लेकर आम इंसानों के लिए चुनौती बनी हुई है।
डीपफेक टेक्नोलॉजी की कैसे हुई शुरूआत ?
2017 में पहली बार डीपफेक तकनीक या शब्द दुनिया के सामने तब आई. जब एक रेडिट यूजर ने इसका इस्तेमाल किया. उसने कुछ मशहूर हस्तियों का चेहरों को अश्लील वीडियो पर लगा दिया। और फिर उस वीडियो को वायरल कर दिया। जिसने पूरी दुनिया में हलचल मचा दिया और कई दिनों तक ये वीडियो दुनियाभर में सुर्खियों में छाई रही। और फिर यहीं से धीरे-धीरे डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल कर फेक वीडियो बनने का सिलसिल पूरी दुनिया में चलन में आ गया। जो आज सरकारों के लिए भी चुनौती बनी हुई है।

डीपफेक वीडियो आप भी पहचान सकते हैं।
डीपफेक (Deepfake) वीडियो या इमेज पहचान चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं कि डीपफेक तकनीक से तैयार नकली वीडियो पहचाना नहीं जा सकता है। इसके लिए आपको बहुत पारखी नजर चाहिए। खासतौर पर वीडियो के इफेक्ट, कलर कॉम्बिनेशन, मूवमेंट, चेहरे का हाव-भाव और आंखों की मूवमेंट के साथ-साथ शरीर के रंग और बॉडी शेफ को पहचानना होगा, असली और नकली वीडियो को इन अंतरों से पहचाना जा सकता है।लिप-सिंक या लिप मूवमेंट और वीडियो के लोकेशन से भी काफी हद तक तक फेक वीडियो या इमेज की पहचान की जा सकती है.
अपनी समझ का करें इस्तेमाल
कुछ वीडियो को आप खुद ही देखकर आसानी से अंदाजा ला सकते हैं कि जो वीडियो आपके सामने है वो असली है या नकली। जैसे अगर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप किसी भोजपुरी गाने पर आपको डांस करते नजर आ जाए। ऐसे वीडियो निश्चित तौर डीपफेक की मदद से तैयार की गई होगी.
डीपफेक को पहचाने वाले AI टूल भी हैं मौजूद
AI या आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस डीपफेक कंटेट बना सकता है, तो मार्केट में ऐसे AI टूल भी हैं। जो डीपफेक वीडियो, इमेज या अन्य ऐसे कंटेंट की पहचान कर सकते हैं। आजकल बहुत सारे AI टूल मौजूद हैं। जिसका इस्तेमाल कर आसानी से नकली कंटेंट की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। जिसमें Hive Moderation और AI or Not जैसे आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) उनमें से ही कुछ टूल हैं। इसके अलावा Deepware Scanner भी एक ऐसा टूल है जिसका इस्तेमाल आप नकली वीडियो या फेक इमेज की पहचान करने के लिए इस्तेमाल में ला सकते हैं। साथ ही और भी ढेरों AI टूल भी गूगल पर सर्च कर पाया जा सकता है.

डीपफेक कंटेंट का प्रचार पहुंचा सकता है जेल
डीपफेक कंटेेंट का इस्तेमाल इन दिनों काफी ज्यादा बढ़ गया है. अफवाह फैलाने से लेकर साइबर फ्रॉड के साथ-साथ चुनावों में भी डीपफेक का इस्तेमाल हो रहा है। जिसको लेकर भारत सरकार पूरी तरह सतर्क है। भारत में डीपफेक को लेकर अलग से कोई कानून फिलहाल नहीं बनाया गया है. लेकिन आईटी एक्ट (IT Act) के अलग-अलग धाराओं में जुर्माने और सजा का प्रावधान है। IT Act 66E और IT Act 67 की धाराओं में डीपफेक कंटेंट ऑनलाइन या किसी भी माध्यम से फैलाने पर भारी जुर्माने के साथ-साथ जेल की सजा का प्रावधान है। इन धाराओं के तहत 2 लाख रुपये का जुर्माना और 3 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
डीपेफक को लेकर भारत सरकार ने SMI को जारी की एडवाइजरी
डीपफेक का इस्तेमाल भारत समेत पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ा है। जिसको लेकर विश्वभर की सरकारें अलग-अलग इस पर लगाम लगाने को लेकर कानून या नियम बना रही हैं। भारत में भी डीपफेक के बढ़ते चलन को देखते हुए साल 2023 के नवंबर महीने में भारत सरकार ने सोशल मीडिया इंटरमीडियारिज को एक खास एडवाइजरी जारी की थी। और SMI से ऐसे टूल्स बनाने की अपील की थी। जिससे डीपफेक कंटेंट की ना सिर्फ पहचान की जा सके बल्कि डीपफेक कंटेंट बनाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भी प्रावधान हो सके।

