Mobile Phone Addiction: दुनियाभर में पैरेंट्स अपने बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहते हैं। पहले सेलफोन यानी मोबाइल से निकलने वाले रेडिएशन की वजह से माता-पिता को बच्चों की चिंता सताती थी, लेकिन इन दिनों सोशल-साइट्स पर ज्यादा समय बिताना सिरदर्द बन गया है। आलम ये है कि स्कूल के दिनों से ही छोटे बच्चे मेटा कंपनी के सोशल साइट फेसबुक और इंस्टाग्राम पर रील्स बनाकर मनोरंजन करते हैं। और जब से यूट्यूब ने शॉर्ट्स वीडियो पर मॉनेटाइजेशन का विकल्प दिया है, पैरेंट खुद छोटे बच्चों से वीडियो बनाकर इसका बिजनेस कर रहे हैं। मोबाइल पर सोशल साइट्स की ही तरह कुछ बच्चे लैपटॉप पर गेम्स खेलने के आदी हैं।

मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए आया स्टार्टअप
इसी को ध्यान में रखकर एक नायशा कपूर ने अपने पिता के साथ एक ऐसे स्टार्टअप की शुरूआत की, जो बच्चों से मोबाइल की लत छुड़वाने में कारगर साबित हो सकती है। पूरे दिन में किसी व्यक्ति द्वारा मोबाइल-लैपटॉप पर बिताये गए कुल समय को स्क्रीनटाइम कहा जाता है। आंखों के डॉक्टर भी स्क्रीनटाइम कम करने की हिदायत देते हैं, क्योंकि ज्यादा स्क्रीनटाइम आंखों की सेहत पर बुरा असर डालता है।
Mobile Phone Addiction: स्क्रीनटाइम बढ़ने से पैरेंट्स चिंतित
‘ऐमजॉन इंडिया’ की एक स्टडी में पाया गया कि स्क्रीनटाइम बढ़ने से पैरेंट्स ज्यादा चिंतित हैं। और वे इससे अपने बच्चों को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करने को तैयार हैं। कोरोना के दौर में नायशा कपूर ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि क्वारंटीन रहते हुए ऑनलाइन क्लास लेने, घर में बैठकर टीवी देखने और मोबाइल पर गेम खेलने की अचानक हुई लत ने उनका स्क्रीनटाइम 9 घंटे कर दिया। जिसका असर उनकी आंखों पर पड़ने लगा। अधिक स्क्रीनटाइम बिताने से आदमी के शारीरिक और मानसिक सेहत पर असर पड़ता है। नायशा कपूर के माता-पिता को भी अचानक हो रहे इन बदलावों की आगे चलकर जानकारी हुई।
Mobile Phone Addiction: स्क्रीनटाइम कम करने का अनोखा प्लान
नायशा और उनके पिता सचिन कपूर ने इस समस्या पर बातचीत की। सचिन कपूर ने एक ऐसा स्टार्टअप बनाया, जो नायशा को स्क्रीनटाइम की चपेट से बाहर निकाल सकता है। उन कामों के लिए नायशा को एक प्वाइंट मिलेगा। यहां तक की बाल बनाने पर भी उसे एक प्वाइंट दिया जाएगा। होमवर्क मिस होने पर नायशा के प्वाइंट कटेंगे। अच्छी आदतों और कुछ नया सीखने के लिए नायशा को सचिन ने अच्छे नंबर देने की सहुलियत दी। धीरे-धीरे नायशा का स्क्रीनटाइम कम होता गया और उसने 1250 अंक हासिल कर इतने ही डॉलर हासिल किये, जो एक लाख रूपये से अधिक हुआ। और इन्हीं पैसे से नायशा ने अपने लिए एक लैपटॉप खरीदा।
10 साल की छोटी बच्ची के लिए इतने पैसे बड़ी रकम हो सकते हैं, लेकिन उनके पिता सचिन के लिए नायशा की सेहत के लिए ये बहुत ज्यादा नहीं था। नायशा अब फोन से अधिक सामाजिक जीवन बिताने में भरोसा करने लगी थी, अपने दोस्तों से मिलना उसकी आदत बन चुका था, ये वही नायशा थी। जो दिन-रात एक कमरे में रहकर फोन से चिपकी रहा करती थी। कोरोना लॉकडाउन बीतने के बाद जब नायशा स्कूल पहुंची तो बार-बार फोन की तरफ देखने की बीमारी लगभग छूट चुकी थी।
नायशा के जीवन में आये इस बदलाव ने सचिन कपूर को उनका स्टार्टअप खोलने का विचार दे गया। सचिन कपूर अब नायशा जैसे लाखों बच्चों के जीवन में ये बदलाव देखना चाहते थे।

‘ट्रम्सी हैबिट कार्ड’
सचिन कपूर ने इसे ज्यादातर अभिभावकों तक पहुंचाने के लिए नायशा की तरह पैसे खर्चाने की जगह कार्ड बनाने का सोचा। जिससे एक लाख का भारी भरकम खर्च ना उठा पाने अभिभावक के लिए भी ये आसानी से सुलभ हो सके। लेकिन ट्रम्सी हैबिट कार्ड के जरिए खुद में बदलाव लाने पर अभिभावक से बच्चों को कुछ अच्छा गिफ्ट देने का सुझाव दिया। जिससे बच्चे स्क्रीनटाइस से जल्दी उबर सकें।

‘ट्रम्सी हैबिट कार्ड’ की मदद से स्क्रीनटाइम कम
ट्रम्सी हैबिट कार्ड में वो सारे काम लिखे गए, जो करने के बाद नायशा से फोन की लत छूटी थी। ये खासकर स्कूल के बच्चों के लिए तैयार किया गया। ट्रम्सी हैबिट में 6 तरह के कार्ड रखे गए। पहला सुबह कुछ नया करें। स्कूल से लौटकर क्या करें। सोने का समय। वीकेंड का प्लान। छुट्टियों के दिन। एक अध्ययन के मुताबिक लगातार 21 दिन कोई काम करने से वो हमारी आदत में आ जाता है।
2023 में सचिन और नायशा ने ट्रम्सी हैबिट कार्ड को दिल्ली के वर्ल्ड बुक फेयर में रखा। 280 ट्रम्सी हैबिट कार्ड एक दिन में बेचने में बाप-बेटी को सफलता हासिल हुई। और ऐमजॉन पर 6 महीने के भीतर सचिन और नायशा को 10 हजार ऑर्डर मिले। एक साल के भीतर अपने स्टार्टअप में कामयाबी पाने के बाद सचिन और नायशा हैबिट कार्ड के नाम से कंपनी बनाने जा रहे हैं। साथ ही तकनीकी जगत में पैर पसार रही दुनिया के लिए सचिन कपूर अपनी बिजनेस पार्टनर और बेटी नायशा के साथ मिलकर अपने हैबिट कार्ड का अब एक ऐप तैयार करना चाहते हैं।

‘ट्रम्सी कार्ड’ अब बना ‘ट्रम्सी कम्पटीशन’
ट्रम्सी कार्ड को सचिन और नायशा ने नया रूप दे दिया है. अब ये एक फ्री एप्लीकेशन का रूप ले चुका है. जिसमें 300 से ज्यादा ऐसे रोचक खेल हैं जो बच्चों को मोबाइल स्क्रीन से दूर रखने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं.
और सबसे अच्छी बात ये है कि पैरेंट्स इस कम्पटीशन में अपने बच्चों को बिना मोबाइल के ही शामिल कर सकते हैं. और इस एप्लीकेशन के जरिए बच्चे प्राइज भी जीत सकते हैं.

‘ट्रम्सी कम्पटीशन’ का गेम रूल
‘ट्रम्सी कम्पटीशन’अलग-अलग एज ग्रुप में बंटा है. जो 3 से 5 साल, 6 से 9 साल और 10 से 12 साल के बच्चों के लिए बना है. साथ ही 14 अलग-अलग कैटेगरी में इस गेम डिवाइड किया गया है. जिसमें आर्ट एंड क्रिएटीविटी, स्पोर्ट्स, फिटनेस, कूकिंग, डांस, एकडेमी के साथ-साथ एंटरप्रेन्योरिशप जैसे कई दूसरे एक्टिविटीज शामिल है।
खेल खेल में मोबाइल की लत छुड़ाने का सचिन और नायशा का ये प्रयोग काफी तेजी से सुर्खियां बंटोर रहा है और बड़ी संख्या में लोग ट्रम्सी कम्पटीशन से जुड़ रहे हैं.

