क्या उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ की सत्ता खतरे में है ?
YOGI ADITYANATH: सूबे की राजधानी लखनऊ से उठी सियासी चिंगारी राजधानी दिल्ली तक पहुंच गई है. और पिछले कई दिनों से मीडिया की सुर्खियों में है.और हो भी क्यों ना जब सवाल सूबे के शीर्ष कुर्सी की है, कि क्या उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ की सत्ता खतरे में है. तमाम अटकलों और उठा-पटक के बाद अंजाम जो भी हो जीत योगी की होनी तय है. वो कैसे इस समीकरण से समझ लीजिए. अगर योगी हटाये जाते हैं. तो जनता उनके साथ खड़ी नजर आएगी. और अगर वो पद पर बने रहेंगे तो उनका कद कहीं और ज्यादा बढ़ जाएगा.
आदित्यनाथ की कुर्सी पर फिर संकट के बादल
ऐसा पहली बार नहीं है जब आदित्यनाथ की कुर्सी पर संकट के बादल छाए हुए हैं. वरिष्ठ पत्रकार श्यामलाल ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि साल 2022 में विधानसभा चुनाव से पहले एक समय आया जब केंद्र ने सीएम की कुर्सी से उन्हें हटाने का फैसला कर लिया था. लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका. उस समय भी टकराव की वजह तत्कालीन और मौजूदा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ही थे.

केशव प्रसाद मौर्य ने रविवार को लखनऊ में बीजेपी वर्किंग कमेटी की बैठक
अब एक बार फिर ‘सरकार से ऊपर संगठन’ का राग छेड़कर केशव प्रसाद मोर्या ने यूपी की सियासत को गर्मा दिया है. केशव प्रसाद मौर्य ने रविवार को लखनऊ में बीजेपी वर्किंग कमेटी की बैठक को संबोधित किया था. और वहां मौर्य ने उस बैठक में कहा था कि संगठन, सरकार से बड़ा होता है और हमेशा बड़ा ही रहेगा. बस उनके इसी बयान ने यूपी की सियासत में हलचल मचा दी और सीधे तौर पर इसे योगी आदित्यनाथ की कुर्सी पर हमला माना जा रहा है.
हालांकि जिस सरकार पर मौर्या सवाल उठा रहे हैं वो खुद उसी सरकार का हिस्सा हैं और उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हैं. तो क्या जिस नाकामी के लिए इनडाइरेक्ट रूप से योगी को निशाना बनाने की कोशिश की जा रही है. उसके लिए केशव प्रसाद मोर्या जिम्मेदार नहीं है. वो भी तब जब 2022 विधानसभा चुनाव में केशव मौर्य सिराथू सीट से खुद चुनाव हार गए थे, इतना ही नहीं केशव मौर्य के गृह जिले कौशांबी की सभी तीन सीट बीजेपी हार गई थी. बावजूद इसके वो उपमुख्यमंंत्री की कुर्सी पर कायम रहें. तो सवाल ये उठता है कि क्या मोर्या जो दावेदारी कर रहे हैं उसके लिए वो कितने फिट हैं.

ड्रोन टैक्सी से हवाई यात्रा के लिए हो जाइये तैयार!
योगी और मोर्या के बीच अंदरखाने का मतभेद सबके सामने
योगी और मोर्या के बीच अंदरखाने जो मतभेद थी. वो अब सबके सामने है और लड़ाई आर-पार की हो चुकी है. अब गेंद दिल्ली में बैठे शीर्ष नेताओं के पाले में है. हालांकि शीर्ष नेता कोई भी फैसला आरएसएस को भरोसे में लिया बिना नहीं कर सकते. और RSS को योगी पसंद हैं। चूकि 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जोर झटका लगा है. ऐसे में योगी को कुर्सी से हटाने का फैसला इतना आसान नहीं है.
वो भी तब जब इस लोकसभा चुनवा को पूरी तरह से बीजेपी की आलाकमान कंट्रोल कर रही थी. और पूरी चुनावी बागडोर अमित शाह ने अपने हाथ में खुल ले रखी थी. यहां तक कि टीकटों के बंटवारे का फैसला भी शाह ने ही खुद किया था. ऐसे में योगी को जिम्मेदार ठहराना कितना आसान है.
गोरखपुर मठ के महंत और वहीं से सांसद रह चुके योगी आदित्यनाथ की पहचान एक सशक्त मुख्यमंत्री के रूप में है. और ऐसा बताया जाता है कि उनकी कार्यशैली केंद्रीयकृत रही है, उसमें वो अपने अलावा संगठन या मंत्रिमंडल में किसी को महत्व नहीं देते हैं. और यही बात जो लोग अब तक सह रहे थे. वो अब विरोध के रूप में सामने आने लगी है.

इसके अलावा यूपी की कानून व्यवस्था और हिंदुत्व छवि भी उनकी मजबूत स्थिति को दर्शाती है. यही वजह है कि इतने सियासी उठा पटक के बावजूद अब तक किसी भी वरिष्ठ नेता ने उनके पद बने रहने या हटने को लेकर इशारों- इशारों में भी कुछ खास नहीं कहा हालांकि इस बीच केशव प्रसाद मोर्या दिल्ली पहुंचे और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से उन्होंने ने मुलाकात भी की लेकिन इस मुलाकात से कुछ ज्यादा निकल कर सामने नहीं आया, इस बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजभवन में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मुलाकात की है. और फिर मीडिया में कई तरह की सुर्खियां छाईं रही.
कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी के इस फ़ीके प्रदर्शन को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं. लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि इसका योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक करियर पर क्या असर पड़ेगा.कुछ बदलाव यूपी सरकार और संगठन में संभव दिखाई दे रहा है. लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (YOGI ADITYANATH) की कुर्सी पर फिलहाल कोई खतरा नहीं है.हां, यहां से योगी को सतर्क रहना होगा. क्योंकि आगे सब कुछ ठीक नहीं रहा तो उनकी राह कठिन हो सकती है.

